Monday, December 7, 2009

कक्षा

जब कक्षा में पहली बार गई मुझे लगा में जीवन हार गई,
ऐसा लगा आगे बढने का मौका मिला हे मुझे ,
पर कक्षा को देखकर दिल के दिए थे सब बुझे
मेने लिया था कॉमर्स चाह थी आगे बढने की,
पर कुछ दिनों में लगा अभी वक़्त हे सीडिया चड़ने की ,
मुझे लगा मेरा सपना साकार न हो पायेगा,
मेरे दिलो दिमाग से कॉमर्स का भूत उतर जाएगा,
इकोनोमिक्स के पिरीएड में होती थी में बोर,
दिल करता था उस समय खूब मचाऊ शोर,
वाणिज्य पढ़ते पढ़ते गुम हो जाती थी में,
ऐसा लगता था मन में ही गुनगुनाती थी में,
कक्षा में थे पुरे १४ छात्र छात्राए,
और सभी थे अच्छे,पर अकाउन्टिंग नही पढ़ती थी मत्थे,
पढ़ते पढ़ते इतने दिन बीत गए ,
सभी छात्र छात्राए ऐसी कक्षा में पढ़ना सिख गए,
पढ़ते पढ़ते कॉमर्स अच्छा लगने लगा,
अब मुझे मेरा सपना सच्चा लगने लगा

4 comments:

  1. sapna ji ki kavita padhkar mujhe bi mere class yad aa gayi......apko bahut bahut badhai

    kajal raipur

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  2. mujhe ye kavita padhkar bahut acha laga.....
    congratulations....


    Tanveer
    INDORE

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  3. Anubhav parak rachnayen nischy hi sabko apkarti hain.tumaharee rachnaabhoga hooaa yatharth hai.
    Bahut bahut badhaee.
    DR.JAIJAIRAM ANAND
    BHOPAL

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