Monday, December 7, 2009

कक्षा

जब कक्षा में पहली बार गई मुझे लगा में जीवन हार गई,
ऐसा लगा आगे बढने का मौका मिला हे मुझे ,
पर कक्षा को देखकर दिल के दिए थे सब बुझे
मेने लिया था कॉमर्स चाह थी आगे बढने की,
पर कुछ दिनों में लगा अभी वक़्त हे सीडिया चड़ने की ,
मुझे लगा मेरा सपना साकार न हो पायेगा,
मेरे दिलो दिमाग से कॉमर्स का भूत उतर जाएगा,
इकोनोमिक्स के पिरीएड में होती थी में बोर,
दिल करता था उस समय खूब मचाऊ शोर,
वाणिज्य पढ़ते पढ़ते गुम हो जाती थी में,
ऐसा लगता था मन में ही गुनगुनाती थी में,
कक्षा में थे पुरे १४ छात्र छात्राए,
और सभी थे अच्छे,पर अकाउन्टिंग नही पढ़ती थी मत्थे,
पढ़ते पढ़ते इतने दिन बीत गए ,
सभी छात्र छात्राए ऐसी कक्षा में पढ़ना सिख गए,
पढ़ते पढ़ते कॉमर्स अच्छा लगने लगा,
अब मुझे मेरा सपना सच्चा लगने लगा

फूल

जो उपर से अच्छे दीखते हे उनके मन में होती हे खोट,
इन फूलो ने मुझको पहुचाई हे चोट,
फूलो का मुस्कुराना मुझे कभी था भाता,
अब हर काँटों के अन्दर मुझे फुल सा चेहरा ही नज़र आता,
फूल सा चेहरा सामने आता हे क्यो,
मेरे दिल से पूछो ये घबरा जाता हे क्यो,
फूलो के पास होने से घबराती हु में ,
अब इसकी खुशबु से कतराती हु में,
काँटों से प्यार और फूलो से नफरत हे मुझे,
दुसरो से स्नेह और अपनों से शिकायत हे मुझे.....